गोदान
- मुंशी प्रेमचंद
उपन्यास सम्राट प्रेमचन्दने अपने यथार्थपरक उपन्यास 'गोदान' की रचना सन् 1936 ई. में की थी। इसमें भारतीय किसान की जीवन-गाथा अत्यन्त हृदयस्पर्शी ढंग से वर्णित है। यह आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक है। इसे पढ़ने के बाद आप -
- भारतीय किसान की आर्थिक और सामाजिक स्थिति की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
- नारी उत्पीड़न, नारी के शोषण, नारी की मानसिकता का पता कर लेंगे ।
- गोदान के मूल में गाय को पालने की लालसा, उसके लिए अर्थ का जुगाड़ करने की कोशिश, गाय के धार्मिक महत्त्व आदि से परिचित होने के साथ-साथ होरी के दर्दनाक अंत को जान सकेंगे ।
- पूँजीपतियों के षडयंत्र के परिणाम स्वरूप ग्रामीण लोगों का जीवन कितना दयनीय हो जाता है, उस पर विवेचन कर सकेंगे ।
- कर्ज, लगान और खेती- ये तीनों कष्ट झेलते हुए कैसे गाँव के लोग धूप की तरह जल- जलकर नि:शेष हो जाते हैं, उस पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।
उनका प्रथम उपन्यास 'सेवा सदन' सन् 1916 ई. में प्रकाशित हुआ । उनके अन्य उपन्यास हैं - प्रेमाश्रम, निर्मला, रंगभूमि, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान, सन् 1903 ई. में प्रेमचन्द ने एक लेख में लिखा था ऐसा बहुत कम संयोग हुआ है कि एक - शांति प्रेमी किसान के रोजाना हालात विस्तार के साथ लिखे हुए मिल सकते हों या उनमें किस्सों की सी दिलचस्पी और अजब अनोखी बातें पाई जाती हो ।
इस इच्छा को उन्होंने होरी - धनिया को नायक-नायिका बनाकर 'गोदान' उपन्यास लिखकर पूरा किया । इसमें तत्कालीन राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक परिवेश का परिचय मिल जाता है तथा गाँव में सरल, सदाचारी, भाग्यवादी जनता कैसे गाँव के मुखिया, महाजन, पुरोहित और जमींदार मिल मालिक किसानों का हर प्रकार से शोषण करके उनको जिन्दगी का जुआ ढोने को विवश कर देते हैं। रसहीन जीवन में उनके सपने को साकार होने का मौका नहीं मिलता। गोदान में प्रेमचन्द ने गाँव की दरिद्रता, भुखमरी, धर्मांधता सरल विश्वास आदि का बारीकी से चित्रण किया है।
कथासार :-
अवध प्रांत में पांच मिल के फासले पर दो गाँव हैं : सेमरी और बेलारी होरी बेलारी में रहता है और राय साहब अमर पाल सिंह सेमरी में रहते हैं। खन्ना, मालती और डॉ. मेहता लखनऊ में रहते गोदान का आरंभ ग्रामीण परिवेश से होता है । धनिया के मना करने पर भी होरी रायसाहब से मिलने बेलारी से सेमरी जाता है। उसे लगता है कि रायसाहब से मिलते रहने से कुछ सामाजिक मर्यादा बढ़ जाती है । वह कहता है, "यह इसी मिलते-जुलते रहने का परसाद है कि अब तब जान बची हुई है ।" वह समझता है कि इनके पाँवों तले अपनी गर्दन दबी हुई है । इसलिए उन पाँवों के सहलाने में ही कुशल है ।
रास्ते में उसे पड़ोस के गाँव का ग्वाला भोला मिलता है। उसकी गार्यो को देखकर होरी के मन में एक गाय रखने की लालसा उत्पन्न होती है। वह विधुर भोला के मन में फिर से सगाई करा देने का लालच देता है । भोला उसे अस्सी रुपये की गाय उधार पर ले जाने का आग्रह करता है और अपने पास भूसे की कमी की बात करता है । होरी अभाव में पड़े आदमी से गाय ले लेने को उचित न मानकर फिर ले लूंगा । कहकर गाय लेने से मना कर देता है, पर भूसा देने का वायदा कर सेमरी में पहुँचता है ।
रायसाहब अपनी असुविधाओं को बता कर चाहते हैं कि टैक्स की वसूली में होरी उनकी सहायता करे। होरी उनकी बातों में आ जाता है। इस समय एक आदमी आकर राय साहब को बताता हैं कि मजदूर बेगार करने से मना कर रहे हैं। यह सुनकर राय साहब आग बबूला हो जाते हैं और उन्हें हंटर से ठीक करने की कह उठकर चले जाते हैं ।
घर पर पहुँकर होरी रायसाहब भी तारीफ करता है तो बेटा गोबर उन्हें 'रंगा सियार' कहकर उनसे अपनी नफरत जाहिर करता है । होरी बताता है कि उसने भोला को भूसा देने का वचन दिया है । यह सुनकर गोबर और धनिया उस पर बिगड़ते हैं । होरी जब बताता है कि भोला धनिया की प्रशंसा कर रहा था, तब धनिया कुछ नरम पड़ जाती है । भोला भूसा लेने आता है । धनिया तीन खोंचे भूसा भरवाकर पति और बेटे को उसके घर तक भूसा पहुँचाने को कहती है ।
भोला के घर पर उसकी विधवा बेटी झुनिया है। उससे गोबर की मुलाकात होती है । दोनों परस्पर के प्रति आकर्षित हो जाते हैं। भोला होरी से दूसरे दिन गाय ले लेने को कहता है ।
दूसरे दिन गोवर भोला के घर से गाय लाता है । झुनिया उसे छोड़ने बेलारी के निकट तक आती । फिर मिलने का वायदा करके लौट जाती है ।
गाय के आते ही होरी के घर में
आनन्द की लहर उमड़ती है। गाय का भव्य स्वागत किया जाता है। गाय के लिए आँगन में
नाँद गाड़ी जाती है। गाँववाले आकर गाय के लक्षण भी और होरी की खुशकिस्मती की तारीफ
करते हैं। केवल अलग्योझा हो गए उसके दो भाई हीरा और शोभा नहीं आते । इससे होरा को
बड़ा दुःख होता है । वह जब हीरा को बुलाने जाता है तो सुनता है कि हीरा शोभा के
सामने होरी की निंदा कर रहा था। होरी धनिया को यह बताता है । धनिया यह सुनकर उससे
झगड़ती है ।
सेमरी में राय साहब के घर पर उत्सव है । उसमें धनुषयज्ञ नाटक में होरी जनक के माली का अभिनय करता है । उत्सव के लिए होरी को पांच रुपये नजराना देना है। राय साहब के मेहमानों में गाँव और शहर के लोग हैं। शहर के मेहमान हैं बिजली पत्र के संपादक पं. ओंकारनाथ, वकील तथा - दलाल मि. तंखा, दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. मेहता, मिल मालिक मि. खन्ना, उनकी धर्मपत्नी कामिनी (गोविन्दी), डाक्टर मिस मालती और मिर्जा खुर्शीद ।
वहाँ बातचीत में रायसाहब जमींदारी प्रथा के शोषण की निंदा करते हैं। डॉ. मेहता और रायसाहब की कथनी और करनी के अंतर के प्रति व्यंग्य करते हैं। भोजन के समय मांस-मदिरा का स्थान छोड़कर ओंकारनाथ अलग से फलाहार करना चाहते हैं। पर मिस मालती अपनी बातों से ओंकारनाथ को भुलावे में डालकर शराब पिलवा देती है और वायदे के मुताबिक एक हजार रुपये इनाम लेती है । उसी समय पठान के वेश में डॉ. मेहता आकर रुपये मांगते हैं और धमकी देते हैं कि रुपये न मिले तो वे गोली चला देंगे । अंत में होरी वहाँ प्रवेश करके पठान को गिराकर उसकी मूँछें उखाड़ लेता हैं। पठान के वेश में आए मेहता की नाटकबाजी वहीं खतम हो जाती है ।
उसी समय सब शिकार खेलने जाने का कार्यक्रम बनाते हैं। तीन टोलियाँ बनती हैं। पहली टोली में मेहता और मालती जाते हैं । मालती मेहता के प्रति आकर्षित है. पर मेहता को इस ओर कोई आकर्षण नहीं है। मेहता को शिकार की चिड़िया पानी से लाकर एक जंगली लड़की देती है और दोनों को अपने घर तक ले जाकर मधुर व्यवहार से खुश कर देती है। इससे मालती ईर्ष्या करती है तो वह मेहता की नजर में गिर जाती है। दूसरी टोली के रायसाहब और खन्ना के बीच मिल के शेयर के बारे में बातचीत होती है । रायसाहब शेयर खरीदने की बात टाल देते हैं। तीसरी टोली में तखा और मिर्जा हैं । मिर्जा एक हिरन का शिकार करते हैं। हिरन को एक ग्रामीण युवक को देते हैं। सब मिलकर उस युवक के गाँव में जाते हैं । खा-पीकर खुशी से सारा दिन वहाँ बिताकर शाम को लौट आते हैं।
होरी के घर पर गाय आ जाने से सब खुश थे। इतने में रायसाहब का कारिंदा कहता है कि नोखेराम बाकी लगान न चुकाने वाले खेत में हल नहीं जोत सकेंगे । होरी पैसे का इंतजाम करने के लिए साहूकार झींगुरीसिंह के पास पहुँचता है। झींगुरी सिंह की आँख गाय पर थी। उसने गाय ले लेने का चक्कर चलाया और कर्ज न लेकर लाचार होकर गाय बेचकर लगान चुकाने के लिए वह राजी हो जाता हैं और धनिया को भी राजी कर लेता है। रात को घर के भीतर उमस होने के कारण वह गाय को बाहर लाकर बांधता है और बीमार शोभा को देखकर लौटते समय गाय के पास हीरा को देखकर ठिठक जाता हैं । उसी रात को विष दिए जाने से गाय मर जाती है तो होरी धनिया को हीरा पर शक होने की बात बता देता है तो धनिया हीरा को गालियाँ देती है और सारे गाँव में कोहराम मचा देती है। होरी भाई को बचाने के लिए सच को छिपाकर गोबर की झूठी कसम खा लेता है । जाँच पड़ताल करने दरोगा गाँव में आता है। गाँव के मुखिया लोग इस विपत्ति का फायदा उठाने के लिए हीरा पर जुर्माना लगाते हैं। कुर्की से बचने तथा परिवार की इज्जत बचाने होरी झिंगुरी सिंह से कर्ज लेकर रिश्वत के पैसे लाता है, पर धनिया के कारण वह दारोगा को मिल नहीं पाता। दारोगा मुखिया लोगों के घर की तलाशी लेने की धमकी देकर उनसे भी रिश्वत के पैसे बसूल करके चला जाता है ।
गोहत्या करके पाप के डर से हीरा घर से भाग जाता है । होरी हीरा की पत्नी पुनिया का खेत संभालता है। बीच में एक महीने तक बीमार भी पड़ जाता है ।
एक रात होरी कड़कती सर्दी में खेत की रखवाली कर रहा था कि धनिया वहाँ पहुँच जाती है। और बताती है कि पांच महीने का गर्भ लेकर झुनिया घर में आ गई है। होरी पहले उसे निकाल देने की बात तो करता है, बाद में धनिया के समझाने पर उसे अपने घर में रहने का आश्वासन देता है। अब फिर से पंचायत को होरी का गला दबाने का मौका मिल जाता है। झुनिया के एक लड़का होता है । बिरादरी में ऐसे पाप के लिए गाँव की पंचायत होरी पर सौ रुपए नकद और तीस मन अनाज का डाँड लगाती है । धनिया पंचायत पर बहुत फुफकारती है । पर होरी झिंगुरी सिंह के पास मकान रेहन पर रखकर अस्सी रुपये लाता है और डाँड चुकाता है।
गोबर - झुनिया को चुपके से अपने घर में छोड़कर लोकलज्जा के भय से लखनऊ शहर भाग जाता है । वह मिर्जा खुर्शीद के यहाँ महीने के पंद्रह रुपये वेतन पर नौकरी करता है । उनकी दी कोठरी में रहता है।
डाँड में सारा अनाज दे देने के बाद होरी के पास कुछ नहीं बचता । इसी समय पुनिया उसकी सहायता करती है । वर्षा के अभाव से उसकी ईख सूख जाती है । भोला गाय के रुपये लेना चाहता है । होरी रुपये दे नहीं पाता । भोला होरी के बैल खोलकर ले जाता है । गाँववाले इसका विरोध करते हैं, पर धर्म के भय से मर्यादावादी और ईमानदार होरी विवश होकर इसकी अनुमति दे देता है ।
मालती राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में व्यस्त रहने वाली महिला है। उसके प्रत्यत्न सेमेहता वीमेन्स लीग में भाषण देने के दौरान महिलाओं को समान अधिकार की मांग छोड़कर त्याग, दया, क्षमा अपनाने का सुझाव देते हैं, जो गृहस्थ जीवन के लिए निहायत जरूरी है । मालती मेहता से सहमत होती है । वह मेहता को अपने घर पर खाने बुलाती है । उसी समय मेहता आरोप लगाते हैं कि उसी के कारण मि. खन्ना, मिसेज खन्ना से अच्छा बर्ताव नहीं करते । यह सुनकर मालती बिगड़ जाती है और अपने घर चली जाती है ।
रायसाहब को पता चल जाता है कि होरी से वसूल किए गए डाँड के सारे के सारे पैसे गाँव के मुखिया लोग खा गए। वे नोखेराम से रुपये देने को कहते हैं तो चारों महाजन 'बिजली' के संपादक ओंकारनाथ को सूचना दे देते हैं कि रायसाहब आसामियों से जुर्माना वसूल करते हैं। ओंकारनाथ रायसाहब को बताते हैं कि वे अपनी पत्रिका में ऐसी सनसनीखेज खबर छापने जा रहे हैं। रायसाहब सौ ग्राहकों का चंदा रिश्वत के रूप में भरकर किसी तरह इसे छापने से रोक लेते हैं ।
जब गाँव में बुवाई शुरू हो जाती है तब होरी के पास बैल नहीं हैं। होरी की लाचारी का फायदा उठाकर दातादीन होरी से साझे में बुवाई करने का प्रस्ताव देकर होरी को मजदूर के स्तर तक ले जाता है ।
उधर दातादीन का बेटा मातादीन झुनिया को प्रेम-पाश में फँसाने के लिए प्रयास करता है । लेकिन बीच में सोना पहुँच जाने से मामला गड़बड़ होने से बच जाता है ।
होरी ईख बेचने जाता है तो मिल मालिक से मिलकर महाजन सारा रुपया कर्ज के लिए वसूल कर लेते हैं।
मि. खन्ना और उसकी पत्नी गोविंदी के स्वभाव में आकाश पाताल का अंतर है। गोविंदी - सादा जीवन पसन्द करती है तो मि. खन्ना विलासमय जीवन एक बार पति-पत्नी में बेटे के इलाज के लिए भिन्न भिन्न डाक्टरों को बुलाने के मतांतर पर झगड़ा हो जाता है। क्रोध से गोविंदी पार्क में चली जाती है । वहीं उसकी मुलाकात मेहता से होती है। मेहता उसकी प्रशंसा कर के उसे समझाबुझा कर घर लौटा लाते हैं। होरी दातादीन की मजूरी करने लगता है।
होरी दातादीन की मजदूरी करने लगता है। ऊख काटते समय कड़ी मेहनत करने के कारण वह बेहोश हो जाता है। उधर गोबर अब नौकरी छोड़कर खींचा लगाने के काम में लग जाता है । उसके पास दो पैसे हो जाते हैं । वह एक दिन गाँव में पहुँचता है। वह सभी के लिए सामान लाता है । गाँव में गोबर महाजनों की बड़ी बेइज्जती करता है । होली के अवसर पर गाँव के मुखिया लोगों की नकल करके अभिनय किया जाता है । फलस्वरूप गोबर सभी महाजनों के क्रोध का शिकार बन जाता है । जंगी को शहर में नौकरी कराने का लोभ दिखाकर उसे प्रभावित कर देते हैं। वह भोला को मना कर उससे अपने बैल ले आता है । दातादीन को तीस रुपये उधार के लिए सत्तर रुपये देना चाहता है । नोखेराम को लगान वसूल करके रसीद न देने पर उसे अदालत की धमकी देता है । झुनिया को फुसलाकर शहर जाते समय माँ से झगड़ा हो जाता है। माँ के पांव में सिर न झुकाकर बिलकुल उदंड और स्वार्थी बनकर बालबच्चों को लेकर शहर चला जाता है ।
राय साहब की कई समस्याएँ थीं। उनको कन्या का विवाह करना था, अदालत में एक मुकदमा करना था और सिर पर चुनाव भी थे। कुंवर दिग्विजय सिंह के साथ शादी तय हुई थी। राजा साहब के साथ चुनाव लड़ना था । पैसों की कमी थी इसीलिए वे तंखा के पास उधार मांगने के लिए जाते हैं। वे मना करते हैं तो वे खन्ना के पास जाते हैं । खन्ना पहले आनाकानी करके बाद में कमीशन लेकर पैसों का इंतजाम कर सकने की बात बताते हैं । बातचीत के दौरान मेहता महिलाओं की व्यायामशाला के लिए चंदा मांगने पहुँचते हैं । खन्ना कुछ देने से मना करते हैं । गोविंदी को भी व्यायामशाला की नींव रखने के लिए मना करते हैं। रायसाहब पांच हजार लिख देते हैं। फिर मालती पहुँचती है तो खन्ना से एक हजार का चैक लिखवा लेती है ।
मातादीन की रखैल सिलिया अनाज के ढेर से कोई सेर भर अनाज दुलारी सहुआइन को दे देती है तो मातादीन उसे धिक्कारता है। निकल जाने को कहता है । सिलिया दुःखी होती है । सिलिया के बाप हरखू के कहने पर उसके साथी मातादीन के मुँह पर हड्डी डालकर उसे जातिभ्रष्ट कर देते हैं । धनिया सिलिया को अपने घर पर रख लेती है । सिलिया मजदूरी करके गुजरबसर करती है। सोना सत्रह साल की हो गई थी । उसके विवाह के लिए पैसों की जरूरत थी। सोना को मालूम हुआ कि पिता विवाह के लिए दुलारी से दो सौ रुपये लाएँगे । सोना सिलिया को भावी पति मथुरा के पास भेजती है । ससुरालवाले बिना दहेज के बहू लेने को तैयार हो गए। लेकिन धनिया अपनी मर्यादा बचाने के लिए दहेज देना चाहती है।
भोला एक जवान विधवा नोहरी से विवाह करता है। नोहरी के साथ बहुओं से नहीं पटती । पुत्र कामना भोला को घर से भगा देती है। नोखेराम नोहरी की लालसा से भोला को नौकर रख लेता है । नोहरी गाँव की रानी की जाती का है। लाला पटेश्वरी साहूकार मंगरू शाह को भड़काकर होरी की सारी ईख नीलाम कर देता है । इससे उगाही की उम्मीद न होने से दुलारी होरी को शादी के लिए दो सौ रुपये नहीं देती है । इतने में सहानुभूति दिखाकर नोहरी होरी को दो सौ रुपये देकर अपनी दयाशीलता का परिचय देती है ।
शहर में परिवार लाकर गोबर देखता है कि जहाँ वह खोंचा लगाता था, वहीं दूसरा बैठने लगा हैं । उसको कारोबार में घाटा हुआ तो वह मिल में नौकरी कर लेता है । झुनिया को गोबर की कामुकता पसंद नहीं आती । गोबर का बेटा मर जाता है। झुनिया गर्भवती है। गोबर नशा करने लगा है। झुनिया को पीटता है, गालियाँ देता है । चुहिया की सहायता से झुनिया एक बेटे को जन्म देती है । मिल में झगड़ा हो जाने से गोबर घायल हो जाता है। मिल गोबर की सेवा करने के दौरान पति पत्नी में फिर संबंध स्वाभाविक हो जाता है ।
मातादीन नोहरी के प्रति फिर से आकर्षित होता है। वह सिलिया के लिए छोटी को दो रुपये देता है । रुपये पाकर सिलिया खुश होती है। यह समाचार देने सोना के ससुराल पहुँचती है। मथुरा नोहरी से प्रेम-निवेदन करता है। दोनों पास-पास आ जाते हैं तो सोना की आवाज से पीछे हट जाते हैं । सोना सिलिया को बहुत फटकारती है ।
मिल में आग लग गई थी । मिल में नए मजदूर ठीक से काम नहीं कर पा रहे थे। इसलिए पुराने मजदूर ले लिए जाते हैं। खन्ना गोविंदी का मनमुटाव मिट जाता है। मेहता से प्रेरित होकर मालती - सेवा व्रत में लगी रहती है । एक दिन मेहता और मालती होरी के गाँव में पहुँचकर लोगों से मिलते हैं । सहायता करते हैं। राय साहब की लड़की की शादी हो जाती है। मुकदमे और चुनाव में भी जीत होती है । वे लोग होम मेंबर भी बन जाते हैं। राजा साहब रायसाहब के पुत्र रुद्रप्रताप से अपनी बेटी के विवाह का प्रस्ताव भेजते हैं पर रुद्रप्रताप मालती की बहन सरोज से विवाह करके इंग्लैंड चला जाता है । फिर रायसाहब की बेटी और दामाद में विवाह विच्छेद हो जाता है। मालती देखती है कि दूसरों की सेवा करने के कारण ऊँची वेतन के बावजूद उन पर कर्ज है। कुर्की भी आई है। तब मालती मेहता को अपने घर पर ले आती है। उनकी सहायता करती है। मालती गोबर को माली रख लेती है। उसके बेटे की चिकित्सा और सेवा भी करती है। मालती मेहता से विवाह करना अस्वीकार करके मित्र बनकर रहने को पसंद करती है।
मातादीन सिलिया के बालक को प्यार करता है। वह निमोनिया में मर जाता है । मातादीन सिलिया के प्रति आकर्षित होता है । सारा जाति-बंधन तोड़कर उसके साथ रहता है।
होरी की आर्थिक दशा दिनोंदिन गिरती जाती है। तीन साल तक लगान न चुकाने से नोखेराम बेदखली का दावा करता है। मातादीन होरी को सुझाव देता है कि अधेड़ रामसेवक मेहता से रूपा की शादी करके बदले में कुछ रुपए ले लें और खेती करे । होरी यह सुनकर बड़ा दुःखी होता है । पर अंत में होरी और धनिया राजी हो जाते हैं। गोबर को शादी में आने की खबर दी जाती है । गोबर झुनिया को लेकर गाँव में पहुँचता है। रूपा की शादी होती है। मालती भी शादी में शरीक होती है । गोबर गाँव में झुनिया को छोड़कर लखनऊ चला जाता है ।
रूपा ससुराल में समृद्धि देखकर पिता की गाय की लालसा की बात सोचकर दुःखी होती है । मैके जाते समय वह एक गाय ले जाने की बात सोचती है। होरी पोते मंगल के लिए गाय लेना चाहता था। इसलिए वह कंकड़ खोदने की मजदूरी करता है। रात को बैठकर धनिया के साथ सुतली कातता हैं । एक दिन हीरा आकर पहुँचता है और होरी से माफी मांगता है। होरी खुश हो जाता है । होरी कंकड़ खोदते समय दोपहर की छुट्टी के समय लेट जाता है । उसको के होती है। उसे लू लग जाती है ।
धनिया भाग कर आती है। सब
इकट्ठे हो जाते हैं । शोभा और हीरा होरी को घर पर ले गए। होरी की जबान बंद हो गई ।
धनिया घरेलू उपचार करती है । सब बेकार जाता है। हीरा गो-दान करने को कहता है ।
दूसरे लोग भी यही कहते हैं । धनिया सुतली बेचकर रखे बीस आने पैसे पति के ठंडे हाथ
में रखकर ब्राह्मण दातादीन से बोलती है महाराज घर में न गाय है न बछिया, न पैसा । यही इनका - गोदान है ।
गोदान उपन्यास की तात्विक समीक्षा
कथावस्तु :-
उपन्यास वे ही उच्च कोटि के
समझे जाते हैं जिनमें आदर्श तथा यथार्थ का पूर्ण सामंजस्य हो । 'गोदान'
में समान्तर
रूप से चलने वाली दोनो कथाएं हैं- एक ग्राम्य कथा और दूसरी नागरी कथा, लेकिन इन दोनो कथाओं में परस्पर सम्बद्धता तथा सन्तुलन पाया
जाता है। ये दोनो कथाएं इस उपन्यास की दुर्बलता नहीं वरन, सशक्त विशेषता है।
'गोदान' उपन्यास की कथावस्तु शोषणकारी शक्तियों की स्थिति को अपने
में समेटे है। प्रेमचन्दजी इस स्थिति का मार्मिक चित्रण यथार्थ के धरातल पर करते
हैं। शोषणकारी शक्तियों के विविध रूप हैं। 'गोदान' होरी की कहानी है,
उस होरी की
जो जीवन भर मेहनत करता है, अनेक कष्ट
सहता है, केवल इसलिए कि उसकी मर्यादा की
रक्षा हो सके और इसीलिए वह दूसरों को प्रसन्न रखने का प्रयास भी करता है, किंतु उसे इसका फल नहीं मिलता और अंत में मजबूर होना पड़ता
है, फिर भी अपनी मर्यादा नहीं बचा
पाता। परिणामतः वह जप-तप के अपने जीवन को ही होम कर देता है। यह होरी की कहानी
नहीं, उस काल के हर भारतीय किसान की
आत्मकथा है। और इसके साथ जुड़ी है शहर की प्रासंगिक कहानी । 'गोदान'
में उन्होंने
ग्राम और शहर की दो कथाओं का इतना यथार्थ रूप और संतुलित मिश्रण प्रस्तुत किया है।
दोनों की कथाओं का संगठन इतनी कुशलता से हुआ है कि उसमें प्रवाह आद्योपांत बना
रहता है। प्रेमचंद की कलम की यही विशेषता है ।
पात्र
चरित्र- चित्रण :-
चरित्र चित्रण की दृष्टि से तो
प्रेमचंद का गोदान में असाधारण सफलता प्राप्त हुई है, ऐसा वाजपेयी जी का कहना है। उनके पात्र कठपुतली न होकर रक्त
मांस के बने सजीव व्यक्ति हैं। पात्रों के चरित्र में सर्वत्र गतिशीलता है, वे स्थिर नहीं है । यद्यपि होरी को इस उपन्यास का नायक माना
जाता है मगर प्रेमचंद ने किसी एक ही पात्र को प्रमुखता नहीं है बल्कि कुछ विशिष्ट
पात्रों को परिपूर्ण आदर्श के विभिन्न अवयवों के रूप में उपस्थित किया है और यह
पात्र अपने अपने क्षेत्र में परीचित्र आदर्श हैं,
होरी, धनिया,
मालती, मेहता,
सिलिया, आदि। इनके सभी पात्र मानव है,
लोकोत्तर
प्राणी नहीं।
गोदान
उपन्यास के मुख्य पात्र
होरी – मुख्य नायक
धनियाँ – होरी की पत्नी
गोबर , सोना , रूपा – होरी की संतान
हीरा और शोभा – होरी के भाई
झुनियाँ – गोबर की पत्नी
होरी
होरी गोदान उपन्यास का नायक हैं। इसमें आदि से
अंत तक होरी की दयनीय और संघर्ष पूर्ण गाथा कही गई है । वह भारतीय कृषक वर्ग का
प्रतिनिधि है, जो सदैव शोषक वर्ग के हाथों यातना
सहने को मजबूर है ।
धनियाँ
धनिया होरी की पत्नी है। गृहस्थ की
भट्टी में सब कुछ झोंककर वह छत्तीस साल की उम्र में वृद्धा बन गई है । उसके सारे
बाल पक गए हैं। चेहरे पर झुरियाँ पड़ गई हैं। सुन्दर गेहुंआ रंग सांवला हो गया है।
आँखों को कम सूझता है। उसके तीन संतानों की मौत हो गई। अब बेटा गोबर सोलह साल, बारह साल की सोना और सात साल की रूपा है । उसका मन कहता है
कि अगर दवादारु ठीक से होती तो वे बच जाते ।
गोबर
गोबर होरी और धनिया का बेटा है।
उसका स्वभाव अपने पिता से विपरीत है। वह प्रत्येक अन्याय का विरोध करता है। वह नई
पीढ़ी के असंतोष का प्रतीक है। धर्मभीरुता,
सरलता और
भाग्यवादिता के कारण तथा साहूकार के कर्जे की चक्की में पिस जाने के कारण पिता की
असहायता देखकर गोबर विद्रोही मनोभाव संपन्न नवयुवक बन जाता है।
कथोपकथन
(संवाद) :-
किसी भी रचना के लिए
संवादा अधिक महत्वपूर्ण होते है उसी प्रकार मुंशी प्रेमचंदजी ने गोदान उपन्यास में
संवाद पत्रों के अनुकूला साबित होते है होरी और धनियाँ के संवाद , होरी और गोबर के
संवाद , झुनियाँ और गोबर के संवाद पत्रों के मुताबित किये गए है । पात्रों में
सजीवता रोचकता दिखाई देती है । सर्वत्र ही छोटे-छोटे वाक्य और पदों में संवाद की
योजना की गई है सर्वत्र ही छोटे-छोटे वाक्य और पदों में संवाद की योजना की गई है ।
देशकाल एवं वातावरण :-
तत्कालीन समय के भारत वर्ष को समझना है
तो हमें निश्चित रूप से गोदान को पढना चाहिए इसमें देश-काल की परिस्थितियों का
सटीक वर्णन किया गया है। कथा नायक होरी की वेदना पाठको के मन में गहरी संवेदना भर
देती है। संयुक्त परिवार के विघटन की पीड़ा होरी को तोड़ देती है परन्तु गोदान की
इच्छा उसे जीवित रखती है और वह यह इच्छा
मन में लिए ही वह इस
दुनिया से कूच कर जाता है।
भारतीय किसान का मूर्तिमान सजीव
रूप है। भारतीय किसान की समस्त विषमताओं का वह जीवंत प्रतिनिधि है। महाजनों का एक
पूरा दल दातादिन, झिंगुरी सिंह, राय साहब,
पुलिस पंच
आदि सभी उसे चूसते हैं। होरी सदैव परिस्थितियों के सम्मुख नतमस्तक होता रहता है
कभी विद्रोह नहीं करता उसकी सरलता ईमानदारी उदारता ही उसके चरित्र की सबसे बड़ी
पूंजी है लेकिन जीवन भर संघर्ष करने वाले ऐसे प्राणी की मृत्यु पर एक गौ भी
दान करने का न हो, इससे अधिक
जीवन की विडंबना और क्या हो सकती है।
'गोदान'
उपन्यास की
कथावस्तु शोषणकारी शक्तियों की स्थिति को अपने में समेटे है। प्रेमचन्दजी इस
स्थिति का मार्मिक चित्रण यथार्थ के धरातल पर करते हैं। शोषणकारी शक्तियों के
विविध रूप हैं। वस्तुत: इनका एक जाल है,
जिसमें उलझकर
किसान अपने को असहाय महसूस करने लगता है। जहाँ एक तरफ छोटे स्तर पर महाजन, साहूकार,
पटवारी, कारिन्दा,
कारकुन तथा
अन्य छोटे कर्मचारी किसानों का शोषण करते हैं,
वहीं दूसरी
तरफ समाज के तथाकथित गणमान्य लोग जैसे- पुरोहित,
जमींदार, थानेदार तथा गाँव के मुखिया भी इन किसानों का दोनों हाथों
से गला दबाने में नहीं चूकते। तत्कालीन किसान की दयनीय दशा का चित्रांकन होरी के
निम्न कथन से हो जाता है। कथन द्रष्टव्य है "उसी की चिंता तो मारे डालती है, दादा।अनाज तो सब का सब खलिहान में ही तुल गया। जमीदार ने अपना
लिया, महाजन ने अपना लिया। मेरे लिए पाँच
सेर अनाज बच रहा। जमींदार तो एक है,
पर महाजन
तीन-तीन हैं। सहुआइन अलग और मंगरू अलग और दातादीन पण्डित अलग। किसी का भी ब्याज
पूरा न चुका। जमींदार के भी आधे रुपये बाकी पड़ गये। सहुआइन से फिर रुपये उधार
लिये तो काम चला। सब तरह से किफायत करके देख लिया भैया, कुछ नहीं होता। हमारा जनम इसीलिए हुआ है कि अपना रक्त बहाएँ
और बड़ों का घर भरें। मूल का दुगना सूद भर चुका,
पर मूल
ज्यों-का-त्यों सिर पर सवार है। "
भाषा शैली :-
प्रेमचंद के उपन्यासों की भाषा
यथार्थपरक पात्रों के अनुकूल तथा देशकाल की स्थिति के अनुरूप है। उनकी भाषा कथा के
प्रवाह, पात्रों की योजना तथा वातावरण की
सृष्टि सभी में पूरा योग देती है। संवादों की भाषा में तो देशकाल का रंग है, और पात्रों की रूपरेखा प्रस्तुत करने में भी लेखक की भाषा
देशकाल से प्रभावित और परिवेश के वर्णन के सर्वथा अनुरूप है।
प्रेमचंद की भाषा में
सजीवता और रोचकता तो है ही करारा व्यंग्य तथा तीखी चोट भी भाषा की विशेषता है।
इनकी शैली विविधता लिए हुए है। कहीं तो विवरणात्मक है और कहीं विश्लेषणात्मक। जहाँ
पर गहन चिंतन है, वहाँ पर तो
भाषा गंभीर और तत्सम शब्द प्रधान है,
लेकिन
अन्यत्र स्वाभाविक सरल और हिंदी उर्दू मिश्रित है। गोदान उपन्यास में भी प्रेमचंद
जी की भाषागत विविधता दृष्टिगोचर होती है। इसमें गंभीर चिंतन के समय भाषा स्पष्टतः
विचार प्रधान है, फिर भी वहाँ
सरलता का गुण सहज ही विद्यमान है,
यथा-
"उनका मानव-प्रेम इस आधार पर अवलंबित न था कि प्राणी मात्र में एक आत्मा का
निवास है । द्वैत और अद्वैत का व्यापारिक महत्व के सिवा वह और कोई उपयोग न समझते
थे और यह व्यापारिक महत्व उनके लिए मानव जाति को एक-दूसरे के समीप लाना. आपस के भेद
भाव को मिटाना और मातृ-भाव को दृढ़ करना ही था। यह एकता, यह अभिन्नता उनकी आत्मा में इस तरह जम गई थी कि उनके लिए
किसी आध्यात्मिक आधार की सृष्टि उनकी दृष्टि में व्यर्थ थी । यश, लोभ या कर्त्तव्य पालन के भाव उनके मन में आते ही न थे।
इसकी तुच्छता ही उन्हें इनसे बचाने के लिए काफी थी।"
उद्देश्य :-
भारतीय किसान की जीवन-गाथा अत्यन्त
हृदयस्पर्शी ढंग से वर्णित है। यह आज के संदर्भ में भी प्रासंगिक है। इसे पढ़ने के
बाद आप भारतीय किसान की आर्थिक और सामाजिक
स्थिति की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे। नारी उत्पीड़न, नारी के शोषण,
नारी की
मानसिकता का पता कर लेंगे । गोदान के मूल
में गाय को पालने की लालसा, उसके लिए
अर्थ का जुगाड़ करने की कोशिश,
गाय के
धार्मिक महत्त्व आदि से परिचित होने के साथ-साथ होरी के दर्दनाक अंत को जान सकेंगे
। पूँजीपतियों के षडयंत्र के परिणाम स्वरूप
ग्रामीण लोगों का जीवन कितना दयनीय हो जाता है,
उस पर विवेचन
कर सकेंगे । कर्ज, लगान और
खेती- ये तीनों कष्ट झेलते हुए कैसे गाँव के लोग धूप की तरह जल- जलकर नि:शेष हो
जाते हैं, उस पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।
'गोदान'
होरी की
कहानी है, उस होरी की जो जीवन भर मेहनत करता
है, अनेक कष्ट सहता है, केवल इसलिए कि उसकी मर्यादा की रक्षा हो सके और इसीलिए वह
दूसरों को प्रसन्न रखने का प्रयास भी करता है,
किंतु उसे
इसका फल नहीं मिलता और अंत में मजबूर होना पड़ता है,
फिर भी अपनी
मर्यादा नहीं बचा पाता। परिणामतः वह जप-तप के अपने जीवन को ही होम कर देता है। यह
होरी की कहानी नहीं, उस काल के हर
भारतीय किसान की आत्मकथा है। और इसके साथ जुड़ी है शहर की प्रासंगिक कहानी । 'गोदान'
में उन्होंने
ग्राम और शहर की दो कथाओं का इतना यथार्थ रूप और संतुलित मिश्रण प्रस्तुत किया है।
दोनों की कथाओं का संगठन इतनी कुशलता से हुआ है कि उसमें प्रवाह आद्योपांत बना
रहता है। प्रेमचंद की कलम की यही विशेषता है ।
