रोटी और संसद कविता का भावार्थ । धूमिल ।

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          रोटी और संसद कविता 'धूमिल' है । इस कविता के माध्यम से राजनीति पर व्यंग्य किया गया है। धूमिल की यह कविता बहुत बड़ी बात कहती है। रोटी और संसद कविता साठोत्तरी काव्यधारा के सशक्त कवि धूमिल ने लिखी है। इस छोटी सी कविता में रोटी की प्राथमिक समस्या को लेकर कवि ने हमारे संसदीय जनतंत्र पर व्यंग्य किया है ।


सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल ‘ :-

            सुदामा पाण्डेय ‘धूमिल’ का जन्म 9 नवंबर 1936 को उत्तर प्रदेश में वाराणसी जिले के खेवली में हुआ था। मात्र 39 साल की आयु में 10 फरवरी 1975 को ब्रेन ट्यूमर से उनकी मृत्यु हुई। हिंदी कविता के साठोत्तरी कविता के महत्वपूर्ण कवियों में उन्हें गिना जाता है। 1972 में आया उनका काव्य संग्रह ‘संसद से सड़क तक’ बहुत चर्चित हुआ। उनकी कविता राजनैतिक विरोध और विद्रोह की कविता है। उनके जाने के बाद उनकी लोकप्रियता लगातार बढ़ी है। उनके कुल तीन काव्य संग्रह प्रकाशित हुए है ।


काव्य संग्रह

  • ‘संसद से सड़क तक’ (1972), 
  • ‘कल सुनना मुझे’ (1974), 
  • ‘सुदामा पाण्डे का प्रजातंत्र’ (1984)

  -‘कल सुनना मुझे’ के लिये उन्हें 1979 का मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया।


कविताएँ

  • यात्री का वक्तव्य 
  • क़िस्सा ए जनतन्त्र
  • विद्रोह 
  • ग़रीबी 
  • मैंने घुटने से कहा 
  • हरित क्रान्ति 
  • पटकथा (लम्बी रचना)
  • मोचीराम 
  • रोटी और संसद 
  • भेंट
  • घर में वापसी 
  • खेवली 
  • सिलसिला 
  • मेरे घर में पाँच जोड़ी आँखें हैं 



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एक आदमी 

रोटी बेलता है

एक आदमी रोटी खाता है

एक तीसरा आदमी भी है

जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है

वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है

मैं पूछता हूँ –

‘यह तीसरा आदमी कौन है ?’

मेरे देश की संसद मौन है।

 

भावार्थ :

          इस कविता के माध्यम से राजनीति पर व्यंग्य किया गया है। धूमिल की यह कविता बहुत बड़ी बात कहती है। रोटी और संसद कविता साठोत्तरी काव्यधारा के सशक्त कवि धूमिल ने लिखी है। इस छोटी सी कविता में रोटी की प्राथमिक समस्या को लेकर कवि ने हमारे संसदीय जनतंत्र पर व्यंग्य किया है ।

           कवि कहते हैं कि हमारे देश में एक वर्ग ऐसा है जो सख्त मजदूरी करता है अर्थात वह रोटी  बेलता है। लेकिन उसे दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती। एक दूसरा वर्ग है, जो खुद मजदूरी नहीं करता अर्थात वह रोटी नहीं बेलता, फिर भी रोटी खाता है । लेकिन एक तीसरा वर्ग भी है, जो न रोटी बेलता है और ना तो रोटी खाता है। वह सिर्फ रोटी से खेलता है। कवि पूछते हैं कि ‘यह तीसरा आदमी कौन है ?  लेकिन हमारी संसद  (पार्लामेंट) उसका उत्तर नहीं देती। मौन धारण करती है। 

         कवि ने लोकतंत्र पर व्यंग्य किया है कहा गया है कि Democracy for the people of the people and by the people. अर्थात लोकतंत्र लोगों के लिए, लोगों की, लोगों द्वारा चलने वाली शासन पद्धति है। लेकिन हमारे लोकतंत्र में सख्त परिश्रम करने वालों को रोटी नहीं मिलती और लोगों के प्रतिनिधि संसद में रोटी की राजनीति खेल रहे हैं। इस कविता में धूमिलजी ने राजनीति पर करारा व्यंग्य किया गया है और भ्रष्ट नेताओं की ओर संकेत किया गया है।



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