"कैदी और कोकिला"(kaidi aur kokila) माखनलाल चतुर्वेदी की एक प्रसिद्ध कविता है जो सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के मुद्दे पर आधारित है। इस कविता में, कैदी और कोकिला का संवाद दरबारी और गुलामी से भरा होता है। कविता में कैदी को एक दुनिया की कड़ी से देखने का विवरण है, जहां सिर्फ उसका दर्द और अस्वतंत्रता महसूस होती है। कोकिला, एक पक्षी के रूप में, स्वतंत्रता के प्रति आत्मसमर्पण का प्रतीक है। कैदी उससे अपनी आज़ादी की आशा करता है। यह कविता एक गहरी सोच की और प्रेरित करती है और व्यक्ति को अपने मौलिक अधिकारों के महत्व पर विचार करने पर विवश करती है।
कैदी और कोकिला
- माखनलाल चतुर्वेदी
क्या गाती हो ?
क्यों रह रह जाती हो ?
कोकिल बोलो तो!
क्या लाती हो ?
संदेशा किसका है ?
कोकिल बोलो तो!
ऊँची काली दीवारों के घेरे में,
डाकू, चोरों, बटमारों के डेरे में,
जीने को देते नहीं पेट भर खाना,
मरने भी देते नहीं, तड़प रह जाना !
जीवन पर अब दिन-रात कड़ा पहरा है,
शासन है, या तम का प्रभाव
गहरा है ?
हिमकर निराश कर चला रात भी काली,
इस समय कालिमामयी जगी क्यूँ आली ?
क्यों हूक पड़ी ?
वेदना बोझ वाली सी ;
कोकिल बोलो तो !
क्या लूटा ?
मृदुल वैभव की
रखवाली-सी,
कोकिल बोलो तो!
क्या हुई बावली ?
अर्द्धरात्रि को चीखी ,
कोकिल बोलो तो !
किस दावानल की
ज्वालाएँ हैं दीखीं ?
कोकिल बोलो तो !
क्या ? - देख न सकती जंजीरों
का गहना ?
हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश राज का गहना ,
कोल्हू का चर्रक चूँ? - जीवन की तान ,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान !
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली ,
इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली ?
इस शांत समय में,
अंधकार को बेध, रो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो !
चुपचाप, मधुर विद्रोह-बीज
इस भाँति बो रही क्यों हो ?
कोकिल बोलो तो!
काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली कमली काली,
मेरी लौह-श्रृंखला काली,
पहरे की हुकृति की ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली !
इस काले संकट - सागर पर
मरने की, मदमाती !
कोकिल बोलो तो !
अपने चमकीले गीतों को
क्योंकर हो तैराती !
कोकिल बोलो तो!
तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली !
तेरा नभ- भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार !
तेरे गीत कहावें वाह ,
रोना भी है मुझे गुनाह !
देख विषमता तेरी - मेरी,
बजा रही तिस पर रणभेरी !
इस हुंकृति पर
कोकिल बोलो तो !
अपनी कृति से और कहो क्या कर दूँ ?
प्राणों का आसव किसमें भर दूँ !
मोहन के व्रत पर ,
कोकिल बोलो तो !
प्रस्तावना :-
माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) भारतीय साहित्यकार, पत्रकार, कवि, एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म 4 अप्रैल 1889 को हुआ था और उनका निधन 30 जनवरी 1968 को हुआ था। माखनलाल चतुर्वेदी ने अपने जीवन में साहित्य, पत्रकारिता, और समाजसेवा के क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपनी शिक्षा मध्य प्रदेश के जबलपुर में पूरी की थी और बाद में, उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। माखनलाल चतुर्वेदी को विशेष रूप से उनकी कविताओं के लिए याद किया जाता है। उनकी कविताएँ सामाजिक और राष्ट्रीय चिंतन को बयान करती हैं और उनमें एक गहरा सामाजिक संवेदन है। उनकी कविताओं में भारतीय समाज की समस्याओं और उनके समाधान के प्रति उनकी चिंता व्यक्त होती है। माखनलाल चतुर्वेदी ने स्वतंत्रता संग्राम में भी अपना योगदान दिया और उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सख्ती से आवाज उठाई है । उनकी प्रमुख रचनाएँ हिम किर्तिनी, हिम तरंगिनी, युग चरण, साहित्य देवता, कैदी और कोकिला, अग्निपथ और पुष्प की अभिलाषा है ।
‘कैदी और कोकिला ’ कविता माखनलाल चतुर्वेदी ने जेल में रहकर लिखी थी। इस कविता में स्वतंत्रता
सेनानी के अनुभव का काव्यात्मक चित्रण किया है। अपने देश को स्वतंत्र कराने के
प्रयत्न में जेल की सजा प्राप्त की है और वहाँ की यातनाओं को झेलकर स्वीकार किया
है।
‘कैदी और कोकिला’ कविता उस समय लिखी
थी जब हमारे देश में ब्रिटीश शासन था। हमारा देश अंग्रेजो की गुलामी में जड़का हुआ
था। माखनलाल चतुर्वेदी खुद भी एक स्वतंत्रता सेनानी थे, जिसके लिए स्वयं उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा था। जेल
में रहने के बाद वे इस बात से अवगत हुए कि जितने भी स्वतंत्रता सेनानी को जेल भेजा
जाता है उनके साथ कितना बुरा बर्ताव होता है इसी बात को भारत की जनता के सामने
लाने के लिए उन्होंने ‘कैदी और कोकिल’ कविता लिखी। जेल के उदास वातावरण में रात्रि में जब कोयल
अपने मन का दुःख व्यक्त कर स्वतंत्रता सेनानीयों की मुक्ति का गीत सुनाती है तो
भारतीय लोगों में अंग्रेजो की गुलामी से मुक्त होने का जज्बा पैदा होता है ।
कविता में व्यक्त राष्ट्रीय भावना :-
इस कविता में कविने जेल में बन्द एक स्वतंत्रता
सेनानी के साथ-साथ एक कोयल का भी वर्णन किया है। इस कविता में कवि जेल में बंद
स्वतंत्रता सेनानी की व्यथा को दर्शाया गया है। कवि बताते है कि जहाँ पर चोर
लूटेरों को रखा जाता है, वहाँ (स्वतंत्रता
सेनानीओं) को रखा जाता है। उन्हें भरपेट भोजन भी नसीब नहीं होता। वहाँ ना जीने
दिया जाता है ना ही मरने दिया जाता है। जीवन की हर एक गतिविधि पर कड़ा पहरा लगा
होता है। जेल में अपराधी की तरह उन्हें बेडियाँ और हथकडियाँ पहनकर रहना पड़ता है।
कवि ने कोयल को (स्वतंत्रता) का प्रतीक बनाकर प्रस्तुत किया है और कवि चाहते है कि
यह कोयल सभी देशवासियों को मुक्ति का गीत सुनाये और भारतीयों में देशप्रेम जाग्रत
हो और अधिक से अधिक युवा आजादी की इस लडाई में जुड़े।
कविने
कारागार में बंद स्वतंत्रता सेनानी की मनोदशा और पीडा को व्यक्त किया है। रात के
घोर अंधकार में कारागृह के ऊपर कोयल चीखती गाती हुई नजर आई, तो उनके मन में कई तरह के प्रश्न उत्पन्न होने लगते हैं।
उन्हें ऐसा लगता कि कोयल कोई संदेश लेकर आयी है। कोई प्रेरणात्मक संगति लेकर आयी
है। जब कवि से रहा नहीं गया तो वे कोयल से प्रश्न पूछने लगते हैं कोकिल! तुम क्या
गा रही हो ? फिर गाते गाते बीच में चुप क्यों हो
जाती हो ?
वो कोयल से कहता है कोयल ! जरा बताओं तो क्या तुम मेरे
लिए कोई संदेशा लेकर आई हो ? मुझे बताओं, किसका संदेशा है ? अगर कोई संदेश लेकर आई हो तो कहते-कहते चुप क्यों हो जाती हो, यह संदेशा किसका है, जरा मुझे बताओ।
कविने
पराधीन भारतीयों के प्रति अंग्रेज शासन की क्रूरता को जनता के सामने प्रस्तुत किया
है ताकि जो जेल बाहर भारतीय है उनको पता चले कि किस तरह का अत्याचार कर रहे हैं। यहाँ
कवि जेल के भीतर उनके साथ होने वाले अत्याचार और अपनी दयनीय स्थिति को व्यक्त करते
हुए कहते है कि उन्हें जेल के भीतर अंधकारमय ऊँची दीवारों के बीच रख दिया गया है
जहाँ डाकू, चोरों उच्चकों के
साथ रहना पड़ता है। स्वतंत्रता सेनानियों के साथ इस तरह का दुर्व्यवहार नहीं किया
जाना चाहिए। उन्हें पेट भर खाना भी नहीं दिया जाता है और नहीं मरने दिया जाता है।
यानि कि उन्हें तड़पा-तड़पा कर जिंदा रखना ही ब्रिटिश शासन का उद्देश्य है।
कैदियों की स्वतंत्रता छीनकर रात- - दिन का सखत पहरा लगा दिया गया है। ऐसा लगता है
जैसे शासन नही अंधेरे का प्रभाव पड़ा हुआ है। अंग्रेज शासन उनके साथ घोर अन्याय कर
रहा है। स्वतंत्रता सेनानी को आकाश में घोर अंधकार रूप निराशा दिखाई दे रही है
जहाँ चन्द्रमा का थोडा सा भी प्रकाश दिखाई नहीं देता। इसलिए कवि कोयल से पूछता है
कोयल! इतनी देर रात तक तू क्यों जाग रही है और दूसरों को क्यों जगा रही है।
कवि
को लगता है कि कोयल की आवाज में एक वेदना से भरी हूक उठी रही है। जेल में बंद
स्वतंत्रता सेनानी कोयल की आवाज में दर्द का अनुभव करता है ऐसा लगता है कि कोयल का
संसार लुट गया है। उन्हें लगा कि कोयल ने अंग्रेज शासन के द्वारा भारतीयों पर किए
जाने वाले अत्याचार को देख लिया है। इसीलिए उसके कंठ से मीठी मधुर ध्वनि के बजाय
वेदना का स्वर सुनाई देता है। तभी कवि कोयल को संबोधित करते हुए कहते है। तभी कवि
कोयल को संबोधित करते हुए कहते है कि – “ हे कोयल! इतनी काली अंधकारमय रात में तू क्युं जाग रही है ? मुझे बताओ ।“
कवि
कोयल से पूछते है, कोयल! बोलो तो
तुम्हारा क्या लूट गया है जो तुम्हारे कंठ से वेदना की हूक सुनाई पड़ रही है जो
मीठी आवाज उसकी पहचान है, कोयल की आवाज सुनकर
कोई भी व्यक्ति प्रसन्न हो उठता है लेकिन जेल में बन्द स्वतंत्रता सेनानीओं को
कोयल की आवाज में दर्द और वेदना का अनुभव हुआ। तभी तो बार बार पूछते हैं कोयल!
आखिर तुम पर कैसा दुःख का पहाड़ टूट पड़ा है ? मुझे बताओ।
स्वतंत्रता
सेनानीओं को कोयल का इस तरह से चीखना बड़ा ही अस्वाभाविक लगता है तभी वे कोयल से
पूछते है आखिर तुम्हें हुआ क्या है इस तरह से आधीरात में तेरा वेदनापूर्ण गाना
मुझे अच्छा नहीं लगता है तुम बताओं कोई पीडा तुम्हें सता रही है आगे भी ब्रिटिश शासन
की ओर इशारा करते हुए कोयल से कहते है कि – क्या तुमने अंग्रेज सरकार की क्रूरता देख ली इसलिए वह चीख चीखकर यह बात सबको
बता रही है।
कवि
को अचानक से यह अनुभव हुआ कि शायद कोयल उन्हें जंजीरों में जकड़ा हुआ देखकर चीख
पड़ी होगी। तभी कवि कोयल से पूछते हैं हे कोयल ! क्या तुम हमें जंजीरों में जकड़ा
देख नहीं सकती।अरे ये तो अंग्रेजी सरकार द्वारा दिया गया गहना (आभूषण) है। अब तो
मानो कोल्हू चलने की आवाज हमारे जीवन का गीत बन गया है। कड़ी धूप में दिनभर पत्थर
तोड़ते तोड़ते हम उन पत्थरों पर अपनी उंगलियों से देश की स्वतंत्रता के गान लिख रहे
हैं। हम अपने पेट पर रस्सी बाँधकर कोल्हू का चरसा – खींच – खींचकर ब्रिटिश
सरकार की अकड का कुआँ खाली कर रहे हैं। अर्थात् कवि कहते है कि इतना दर्द सहने के
बावजूद अंग्रेज सरकार के सामने नही झुके। जिससे उनकी अकड कम अवश्य हो जाएगी। इसी
वजह से दिन में दुखों को सहने के लिए शक्ति आ जाती है जिससे हमें कोई दुःख या पीडा
नहीं होती और ना ही हम आँसू बहाते है । शायद तुमहें इसका पता चल गया है इसलिए तुम
हमें रात में सांत्वना देने आयी हो। परन्तु तुम्हारे इस वेदना भरे स्वर ने मेरे मन
को अत्यधिक व्याकुल कर दिया है।
“ क्या ? - देख न सकती जंजीरों
का गहना ?
हथकड़ियाँ क्यों? यह ब्रिटिश राज का गहना ,
कोल्हू का चर्रक चूँ? - जीवन की तान ,
गिट्टी पर अँगुलियों ने लिखे गान !
हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ ,
खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ ।
दिन में करुणा क्यों जगे, रुलानेवाली ,
इसलिए रात में गज़ब ढा रही आली ? “
आगे भी
कवि कोयल से पूछता है कि इस अर्धरात्री में अंधकार को बेधते हुए क्यों रो रही हो ? कोयल चुपचाप विद्रोह के बीज बो रही हो। इस प्रकार कविने
कारावास में केद एक स्वतंत्रता सेनानी की मनोदशा का चित्रण किया है। कि किस तरह
कोयल गीत गाकर भारतीयों में देश- प्रेम एवं देशभक्ति का जज्बा पैदा करना चाहती है।
ताकि वे अंग्रेजो की गुलामी से मुक्त हो सके।
ब्रिटीश शासन काल
के दौरान कारावास में स्वतंत्रता सेनानियों के साथ घोर अमानवीय बर्ताव का वर्णन
किया है। काले रंग को अशांति का प्रतिक माना गया है। इस लिए कवि ने हर काली चीज का
जिक्र किया है, कवि कोयल से कहता है कि कोयल तेरा
रंग काला है। ब्रिटिश सरकार की करनी भी काली है। यह रात भी ( अंधकारमय ) कालिमा
पूर्ण है। ब्रिटीश सरकार के कारनामें भी काले है और जेल की काली चारदीवारी में
चलनेवाली हवा भी काली है। टोपी और कम्बल का रंग भी काला है। मैने जो लोहे की
हथकडियाँ बेड़ियाँ पहन रखी है। वह भी काली है। इतना अत्याचार सहने के बाद हमे हमारे
ऊपर दिन भर नजर रखनेवाले पहरेदारों की गाली भी सुननी पड़ती है जो साँपित समान काली
है। इतना अमानवीय व्यवहार के बाद भी वे लोग कैदियों को गालियाँ देते हैं।
काली तू, रजनी भी काली,
शासन की करनी भी काली,
काली लहर कल्पना काली,
मेरी काल कोठरी काली,
टोपी काली कमली काली,
मेरी लौह-श्रृंखला काली,
पहरे की हुंकृति की
ब्याली,
तिस पर है गाली, ऐ आली !
कवि यह नहीं समझ
पा रहा है कि तुम स्वतंत्र होने के बावजूद भी अर्धरात्रि में संकट रुपी सागर के
ऊपर मंडराकर अपनी मधुर आवाज में गीत क्यों गा रही हो ? क्या तुम्हें डर नहीं लगता। इसलिए कैदी कोकिल से पूछता है
कोयल ! बताओ तुम आजादी की भावना जाग्रत करनेवाले इन चमकीलें गीतों को इन विपरीत
परिस्थितियों में कैसे गा लेती हो।
आगे भी कवि अपनी
(कैदी) और कोयल की तुलना करते हुए कहते हैं । कि तुझे रहने के लिए वृक्ष की हरभरी
डाली मिली और मेरे नसीब में यह काली कोठरी ! जिसमें मुझे जीवन बीताना है। तूतो
खुले आकाश में विहार कर सकती हो। अंधकार से भरी यह १० फूट की कोठरी ही मेरा जीवन
है। तेरी मधुर आवाज सुनकर लोग वाह वाह करते है और मेरा रोना भी गुनाह है मैं खुलकर
से भी नहीं सकता। मुझ में और तुझमें कितना अन्तर है तुम प्रसन्न होकर गा रही है और
मैं बहुत दुःखी हूँ। हमारी परिस्थियाँ अलग अलग है । कवि कोयल को पूछने है कि फिर
भी तुम रणभेरी के गीत क्यों गा रही हो?
तुझे मिली हरियाली डाली,
मुझे नसीब कोठरी काली !
तेरा नभ- भर में संचार
मेरा दस फुट का संसार !
हे कोयल! तेरे और मेरे बीच में अन्तर है इसके
बाद भी तू रणभेरी बजाकर लोगों को आजादी की लड़ाई के लिए उत्साहित कर रही है। कैदी
भारतवासियों को अंग्रेजों की गुलामी में से मुक्त कराने के लिए जेल की यातनाएँ
भुगत रहे है। सहन कर रहे हैं। कवि कोकिला से कह रहा है कि हे कोकिल ! तुम्हारी
हंकृति पर मैं अपनी रचनाओं ( कविता ) के माध्यम से देशप्रेम की भावना जाग्रत कर
रहा हूँ लेकिन तुम मुझे बताओं कि में देश की स्वतंत्रता के लिए और क्या कर सकता
हूँ। कैदी कोकिल से कहता है है कोकिल ! मुझे बताओं गांधीजी द्वारा चलाये जा रहे
स्वतंत्रता आंदोलन में किस तरह अपने प्राणों को न्योछावर कर दूँ अपनी कलम के
द्वारा भारतीयोंमें क्रांति की लहर फैलाने के लिए तत्पर हूँ ।
उपसंहार :-
अतः हम कह सकते है कि उस वक्त हमारे भारत
में ब्रिटिश शासन था। हमारे कई कवि और लेखकोने भी स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा
लिया था और देश को आजाद कराने के लिए जेल भी गये थे और अंग्रेज सरकार की यातनाओं को भी सहा था। यह कविता भी कविने
जेल में रहकर ही लिखी थी। कविने अपनी कविता के माध्यम से लोगों में क्रान्ति की
ज्वाला भडकाने का काम कीया। और देश वासियों नें अंग्रेजो के खिलाफ विद्रोह की
भावना जाग्रत की है ।
💠 कैदी और कोकिला कविता के प्रश्न और उतर
प्रश्न 1. 'कैदी और कोकिला' कविता किसकी रचना है ?
उतर :- कैदी और कोकिला कविता माखनलाल चतुर्वेदी की है ।
प्रश्न 2. माखनलाल चतुर्वेदीजी ने यह कविता कहाँ रह कर लिखी थी ?
उतर :- माखनलाल चतुर्वेदीजी ने यह कविता जेल में रह कर लिखी थी ।
प्रश्न 3. कैदी और कोकिला कविता लिखी गई तब किसका शासन था ?
उतर :- कैदी और कोकिला कविता लिखी गई तब हमारे देश में ब्रिटिश का शासन था ।
प्रश्न 4. इस कविता में कोयल को किसका प्रतिक बनाकर प्रस्तुत किया है ?
उतर :- इस कविता में कोयल को स्वतंत्रता प्रतिक बनाकर प्रस्तुत किया है ।
प्रश्न 5. कविने कविता में किसकी पीड़ा को व्यक्त किया गया है ?
उतर :- कविने कारागार में बंद स्वतंत्रता सेनानी की मनोदशा और पीडा को व्यक्त किया है।
